अत्यधिक चिंता में रहने से शरीर पर पड़ सकते है यह 7 प्रभाव, जाए कैसे करें बचाव ?
चिंता किसी वर्तमान स्थिति या फिर आगमी घटना के बारे में तनाव के लिए आपकी एक सामान्य शारीरिक प्रतिक्रिया की तरह होता है | दरअसल इस प्रतिक्रिया शुरुआत आपके प्रमस्तिष्क में होती है, जो की मस्तिष्क का एक हिस्सा होता है और यह हाइपोथैलेमस को संकट के संकेत भेजने का कार्य करते है | इसके बाद ही इस संकेत को शरीर के बाकी हिस्से में “ लड़ो और उड़ो ” प्रतिक्रिया को उतपन्न करने के लिए भेजा जाता है |
शारीरिक रूप से बात करें तो चिंता सकारात्मक तनाव का एक अल्पकालिक प्रतिक्रिया की तरह होता है | इस स्थिति में एन्ड्रोनालिन नामक हार्मोन हृदय की गति में आये अचानक से वृद्धि, मस्तिष्क में रक्त प्रवाह और ऑक्सीजन में वृद्धि सामूहिक रूप से हमारे शरीर को समस्या पर ध्यान केंद्रित करने और उसका सामना करने के लिए तैयार करते है | हालांकि हमारे दैनिक जीवन में ऐसी कई स्थितियां होती है, जैसे कि रास्ते में ट्रैफिक के कारण आफिस देरी से पहुंचने की आशंका, तय किये गए समय पर काम का न हो पाना, एक खोयी हुई वस्तु का समय पर न मिलना, परीक्षा या फिर साक्षात्मक से होने वाले तनाव का डर रहना, परिजन से मिलने के समय पर मिल पाना और भी ऐसे कई तरह के तरह की स्थितियां चिंता तनाव के श्रृंखला को ट्रिगर कर सकते है | जिसकी वजह से आपके शरीर में भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी हानिकारक प्रतिक्रिया होने लग जाते है |
चिंता कोई गंभीर बीमारी नहीं है लेकिन यह पीड़ित व्यक्ति के लिए दीर्घकालिक स्थिति बन सकती है, इसलिए इस समस्या से जुड़े लक्षणों का पता लगते ही तुरंत अपनर मौचिकित्सक विशेषज्ञ के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं | इसके लिए मानस हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट और पंजाब के बेहतरीन सायकार्टिस्ट डॉक्टर राजीव गुप्ता से परामर्श कर सकते है | आइये जानते है चिंता विकार कितने प्रकार के होते है और इससे पड़ने वाले प्रभाव के बारे में :-
चिंता विकार कितने प्रकार के होते है ?
सामान्य चिंता विकार यानी जीएडी
यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब आप अधिकांश परिस्थितियों के बारे में अधिक चिंता करने लग जाते है और आपको इस बात का ज्ञात भी नहीं रहता कि पिछली बार कब आप आराम की मानसिक स्थिति में थे | एक व्यक्ति को इस प्रकार की चिंता मस्तिष्क में मौजूद रसायनों के असंतुलन होने के कारण होता है |
ऑब्सेसिव कम्प्लीसीव डिसऑर्डर यानी ओसीडी
ओसीडी होने के कारण व्यक्ति में जुनूनी विचार की प्रतिक्रिया उत्पन्न होने लग जाती है, जिससे वह काफी परेशान हो सकता है और यह स्थिति किसी काम को बार-बार करने की अत्यधिक इच्छा को या फिर मज़बूरी को पैदा कर सकता है | यह स्थिति ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति के आदतों में दिखाई देने लग जाता है, चाहे उसे लगातार सफाई करना हो, चाहे अनावशयक रूप से अपने हाथों को धो रहा हो, अपने दराज़ में निश्चित रूप से वस्तुओं को व्यवस्थित करना या फिर कपडे को बार-बार तेह लगाना आदि |
पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर यानी पीटीएसडी
पीटीएसडी एक व्यक्ति को तब होता है जब एक चिंता का विकार किसी विशेष रूप से तनावपूर्ण समय से गुजर रहा हो, जैसे कि युद्ध क्षेत्र में होने से, किसी दुर्घटना की चपेट में आने से या फिर हमले से बचाव होने के बाद, या कोई प्राकृतिक आपदा के कारण घटी घटना के कारण आदि से हो सकता है |
भय यानी फोबिया
जब एक व्यक्ति को किसी वस्तु, जीव, स्थान या फिर कोई घटना, मधुमखियां, मकड़ियां, ऊंचाई, अंधेरे, तंग जगहों, आग आदि से अत्यधिक डरने लग जाता है तो इस स्थिति को फोबिया कहा जाता है |
त्रास का अनुभव होना यानी पैनिक अटैक
लंबे समय तक चिंता या फिर तनाव में रहने से एक व्यक्ति को पैनिक अटैक आ सकते है | इसमें व्यक्ति को शारीरिक लक्षण जैसे की दिल की धड़कन का अचानक से बढ़ना, अत्यधिक पसीना आना, हाथ और पैर का ठंडा होना, सांस लेने में असमर्थता होना या फिर हाइपरवेन्टीलेट महसूस कर सकता है |
आइये जानते है अत्यधिक चिंता में रहने से पढ़ने वाले ऐसे 7 प्रभाव के बारे में, जो मानसिक और शरीरिक स्वास्थ्य को नकारत्मक रूप से प्रभावित कर रहा है |
अधिक चिंता आपके शरीर में डाल सकते है ये 7 प्रभाव
- सांस लेने में तकलीफ होना
अत्यधिक चिंता करने से आपकी सांसे छोटी, उथली और तेज़ हो जाती है, जिससे आपको बाद में सांस लेने में भी तकलीफ हो सकती है |
- पेट और आंतो से जुड़ा विकार
लगातार चिंता में रहने से यह आपके पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप आपको कई तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है |
- दिल से जुड़ी बीमारी
दरअसल अत्यधिक चिंता के दौरान व्यक्ति के दिल की धड़कन और सांसे काफी तेज़ हो जाती है | जिसके परिणाम स्वरूप लगातार उच्च स्ट्रेस हार्मोन की वजह से उच्च रक्तचाप और दिल में दौरे पड़ने का खतरा बढ़ जाता है |
- प्रतिरक्षा प्रणाली का कमज़ोर होना
बार-बार स्ट्रेस हार्मोन के स्त्राव और लड़ो या उड़ो प्रतिक्रिया से मुकाबला करने से आपके शरीर को सामान्य आराम वाली स्थिति में लौटने का समय नहीं मिल पता, जिसकी परिणामस्वरूप आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली काफी कमज़ोर होने लग जाती है |
- मांसपेशियों में पुराना दर्द और तनाव
बार-बार तनाव जैसी स्थिति में रहने से, आपके प्रमस्तिष्क में मौजूद केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में बार-बार संकट होने के संकेत उत्पन्न होने लग जाता है, जिसकी वजह से यह आपकी मांसपेशियों को संकुचित और कसने पर प्रबंधित करने लग जाते है | लगातार मांसपेशियों में तनाव पड़ने से मांसपेशी में ऐंठन, अकड़न या फिर दर्द भी हो सकता है, जो आपके पूरे शरीर में फ़ैल सकता है |
- याद्दाशत कमज़ोर होना
जब आप लगातार चिंता में रहते है तो यह आपके अल्पकालिक या फिर कामकाजी स्मृति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लग जाता है | जिसके परिणामस्वरूप आप खुद को एक ही गलती को बार-बार दोहराते पा सकते हो, अपने महत्वपूर्ण युक्ति को भूल सकते हो या फिर आपको व्यस्त कार्यक्रम का सामना करने में परेशानी हो सकती है |
- मोटापा
जब आप बार-बार चिंता में रहते है तो इससे आपका मस्तिष्क शरीर में एड्रेनालिन और कॉर्टिसोल नामक हार्मोन का अधिक स्राव करने लग जाते है | यह अधिक स्त्राव आपको चॉकलेट, पेस्ट्री जैसे मीठे पदार्थ का सेवन करने और अधिक चीनी वाले पेय का सेवन करने के बाध्य करता है | जिसके परिणामस्वरूप आप में रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि होने लग जाता है, जो आगे जाकर आपके वजन को बढ़ाने का कार्य करते है |
यदि आप ऊपर बताए गए किसी भी परिस्थिति से गुजर रहे है तो बेहतर यही है कि इलाज के लिए आप तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक विशेषज्ञ से मिले, इसके लिए आप मानस हॉस्पिटल से भी परामर्श कर सकते है | मानस हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर राजीव गुप्ता पंजाब के बेहतरीन सायकार्टिस्ट में से एक है, जो अपने मरीज़ों का सटीकता से इलाज करने में पूर्ण रूप से मदद कर रहे है | इसलिए आज ही मानस हॉस्पिटल की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाएं और परामर्श के लिए अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | इसके अलावा आप चाहे तो वेबसाइट में मौजूद नंबरों से सीधा संस्था से भी बात कर सकते है |